आज औद्योगिक प्रगति और मोटर वाहनों के कारण मिट्टी, जल, वायु, आकाश सभी कुछ प्रदूषित होता जा रहा है। अब समस्या इतनी विकट हो चुकी है कि रावण की तरह यह हमारे जीवन से स्वास्थ्य, सुख-शांति जैसी शुभ चीजों तथा भावनाओं को नष्ट कर रहा है। यह स्वय में ही एक बहुत बङा विषय है। अत: हम यहां संक्षेप में उन उपायों पर विचार करेंगे जिनसे प्रदूषण की हानियों से बचा जा सकता है: –
(अ) अपने घर में तुलसी, गुलाब, गेंदा, चंपा, चमेली आदि के अधिक से अधिक पौधे लगाएं । अपने जन्मदिन पर नीम, पीपल, बरगद आदि के वृक्ष घर के समीप स्थित किसी खाली स्थान या बागीचे में रोपिए । वृक्षों तथा पौधों से हमें आँक्सीजन मिलती है जो जीवन के लिए परम अनावश्यक है । यही नहीं पेड़-पौधे अनेक प्रकार के प्रदूषणों से भी हमारी रक्षा करते हैं।
(ब) जब तक बहुत अवश्यक न हो, मोटर वाहन या स्कूटर आदि मत खरीदिए और न उसकी सवारी करिए । यदि आपके पास इस प्रकार का कोई वाहन है तो उसमें धुएं के प्रदूषण से बचने का उपकरण लगाइए।
(स) वाहन चलाते समय “मास्क” लगाइए अथवा पानी से भीगे सूती कपङे को नाक पर बांधिए। धुआं करने वाली चीजों-रबर, प्लास्टिक, पॉलीथीन आदि को मत जलाइए। जहां तक संभव हो, धुएं और धूल भरे वातावरण से अपने को दूर रखिए क्योंकि इनसे गले, फेफडे और ह्रदय संबंधी रोग हो सकते हैं।
(द) पानी को उबाल और छानकर उपयोग में लाइए। पानी को बेकार में नष्ट न होने दीजिए, विशेष रूप से शुद्ध पानी। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पूरा विश्व शीघ्र ही जल संकट का विकराल रूप से सामना करने वाला है।
(य) प्लास्टिक और पॉलीथीन की चीजों का कम से कम उपयोग करिए। इनकी बढ़ती हुई संख्या प्रदूषण की विकट समस्या उत्पन्न कर रही है।
(र) रेडियो, टेलिवीजन आदि को धीमा बजाइए। देवी-देवताओं के नाम पर किए जाने वाले रात्रि जागरण में लाउडस्पीकर का प्रयोग न करें। तेज शोर-शराबा अनेक प्रकार के शारीरिक-मानसिक रोगों को जन्म देता है। इससे सिर दर्द, अनिद्रा, अपच और बहरेपन की शिकायत हो जाती है।
(ल) जीवन को अधिक से अधिक सादा तथा प्रकृति के अनुकूल बनाइए। आवश्यकताओं को बढाने से व्यक्ति दूसरों की इच्छा पर निर्भर करने लगता है। यह निर्भरता मानसिक कष्ट का कारण बनती है । इसके अतिरिक्त विलासितापूर्ण वस्तुओं-फ्रिज, एयरकंडीशनर, सेन्टेड स्प्रे आदि का उपयोग यथासंभव मत कों । इनमें क्लोरोफ्लोरोल जैसी गैसों का उपयोग किया जाता है जिनसे पृथ्वी के ऊपर रहने वाली ओजोन गैस की सुरक्षा परत में छेद हो जाते हैं। इस कारण सूर्य की किरणों के घातक और हानिकारक तत्व धरती तक आ जाते है। इस प्रकार की सूर्य किरणों से कैंसर जैसे भयानक रोग हो सकते हैं।
(व) रासायनिक कीट-नाशकों और खादों का उपयोग प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ता है। इनका बिष देर-सवेर मिट्टी-पानी में मिल जाता है और अंत में मनुष्य के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है।