पानी कब और कैसे पीना चाहिए – इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना उतना ही अनिवार्य है, जितना कि आहार सम्बन्धी नियमों की जानकारी ।
एक कहावत है कि “शीत ऋतु में पानी तभी पीना चाहिए जब इसकी जरूरत महसूस हो और गर्मी के मौसम में पानी जितनी बार मिल जाये, पी लेना चाहिए ।”
इसका अर्थ केवल यही है कि शीत ऋतु में प्यास कम लगती है किन्तु गर्मी में प्यास मिटती ही नहीं । लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि गर्मी के मौसम में हर घडी पानी का गिलास मुंह को लगाये रखा जाये । पानी कब पिएं, कैसे पियें – इस बारे में ज्ञान प्राप्त होना अनिवार्य इसीलिए है कि कहीं आप अपने स्वास्थ्य को हानि न पहुंचा बैठें ।
- पानी हर मौसम में पिया जाता है । शीत ऋतु में क्योंकि खून की हरारत प्राय: बढ़ती नहीं, इसलिये प्यास कम ही महसूस होती है । शरीर को जितना पानी दरकार होता है, उतना हम फलों, तरकारियों, चाय, दूध, कॉफी आदि द्वारा ले लेते हैं । कुछ मात्रा में पानी भोजन के बाद भी पी लिया जाता है और इस प्रकार शरीर की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है । फिर भी यदि प्रतिदिन थोङी मात्रा से ज्यादा पानी पी लिया जाये तो इससे शरीर को बहुत लाभ प्राप्त होता है ।
- गर्मी के मौसम में विशेष रूप से सावधानी एवं सतर्कता बरतनी चाहिए । शरीर में हरारत बढ़ जाने के कारण पानी की प्यास तीव्र रहती है और यदि बार-बार प्यास बुझाने के लिये पानी पिया जाता है तो इसका नतीजा हैजे जैसे भयानक रोग भी हो सकते हैं ।
- गर्मी में दो तरह की प्यास अनुभव होती हे – झूठी प्यास और वास्तविक प्यास । झूठी प्यास में पानी की इच्छा तो तीव्र होती है किन्तु पेट में पानी डालने के लिये स्थान नहीं होता । यही हालत मुसीबत का कारण बनती है । इस प्रकार की झूठी प्यास अनुभव होने पर तुरन्त ही पानी नहीं पियें बल्कि अपने आपमें झांककर इसका कारण खोजें एवं उसे दूर करें । झूठी प्यास अत्यधिक खा लेने, दिन-भर कुछ-न-कुछ खाते रहने, सोडावाटर एवं बर्फ का अधिक प्रयोग करने वाले व्यक्ति ही अनुभव करते है ।
- धूप में काफी समय तक रहने, खेलने-कूदने, किचन में आग के निकट बैठे रहने और कोई भी कठोर परिश्रम करने के तुरन्त बाद ही पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि कुछ देर बाद ही पानी पियें ।
- इसी प्रकार भोजन के बीच में ही या तुरन्त बाद पानी नहीं पीना चाहिए । इससे मेदा खराब हो सकता है।
- गर्मी के मौसम में जब वास्तविक प्यास महसूस हो तो पानी पी लेना चाहिए । इस समय आप सामान्य आवश्यकता से कुछ अधिक पानी भी पी सकते है ।
- पानी जल्दी – जल्दी एवं एक ही सांस में नहीं पीना चाहिए बल्कि धीरे-धीरे पियें ।
- गर्मी के मौसम में बर्फ का इस्तेमाल आमतौर से किया जाता है । क्योंकि बर्फ की तासीर गरम होती हैं इसलिये बढ़ी हुई हरारत को कम करने की बजाय यह और भी बढा देती है । परिणाम वही ‘झूठी प्यास’ निकलता है । यही हाल सोडावाटर के कारण होता है । ऐसे पदार्थों का प्रयोग न करें ।
- ताजा पानी, मटके या सुराही में रखा ठण्डा पानी ही पीना चाहिए । शर्बत अथवा शिकंजबीन का प्रयोग भी किया जा सकता है ।
- यदि अत्यधिक गर्मी हो, लू चल रही हो, तो लैमू का रस सादे पानी में मिलाकर पीना चाहिए । पानी में जरा-सा नमक भी डाला जा सकता है ।
- कोई भी गरम पदार्थ सेवन करने के तुरन्त बाद ठण्डा पानी या ठण्डा पदार्थ सेवन करने के तुरन्त बाद गरम पानी कभी नहीं पीना चाहिए । इससे दांत, गला, मेदा आदि पर कुप्रभाव पङता है और इनसे सम्बन्धित भिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं ।
- पानी पीने के तुरन्त बाद ही कोई भी कठोर कार्य नहीं करना चाहिए ।
- प्रातः सोकर उठने के बाद निराहार मुंह नीबू का रस मिलाकर आधा गिलास पानी पीने से कब्ज नहीं होती । सादा पानी भी पिया जा सकता है ।
- मौसम के अनुसार ताजा फल एव सब्जियों का सेवन अधिक करना चाहिए क्योंकि इनसे पानी काफी मात्रा में होता है ।
- जिस पानी का इस्तेमाल आप करते है, इसके बारे में आपको ज्ञात रहना चाहिए कि क्या यह स्वच्छ एवं साफ है ? यदि आपके नगर अथवा गांव में कोई रोग फैला हो तो उन दिनों में पानी को उबालने के बाद प्रयोग में लाना चाहिए ।
- जिस बर्तन में पानी पिये उसे भलीभांति देख लें कि यह गंदा तो नहीं है ? पानी के साथ – साथ बर्तन का साफ होना भी आवश्यक है ।
- चिकने पदार्थ, आम, ककङी, खरबूजा, खीरा आदि पदार्थ सेवन करने के बाद भी पानी नहीं पियें ।
- फ्लू नजता-जुकाम, खांसी, हिचकी, लकवा, पेट की पीङा आदि रोगों से पीङित व्यक्तियों को चाहिए कि वे ठण्डा पानी नहीं पियें । ऐसे व्यक्तियों को सुसम (धीमा गरम) पानी ही पीना चाहिए ।
- बरसात के मौसम में पानी को उबाल लेना बहुत ज़रूरी होता है, क्योंकि इस मौसम में पानी प्राय: गंदला जाता है ।
- पीलिया, कब्ज, अपच, खून की बढी हुई हरारत, मूत्र-नलिका से जलन आदि रोगों में पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए ।