कारण
यह रोग प्राय: सभी प्रकार के व्यकि्तयों को हो जाता है। यह रोग वैसे तो सभी ऋतुओं में हो जाता है परन्तु वर्षा, हेमन्त और जाङे में अधिक होता है। प्राय: देखा गया है कि दो ऋतुओं के संधिकाल में यह रोग अधिक होता है, क्योंकि पूर्व ऋतु में रचा-बसा व्यक्ति नई ऋतु को सहन करने के अयोग्य होता है और तब दूषित वायुमंडल इस रोग को बढ़ा देता है। दूषित धुएं, धुल आदि के कारण भी यह रोग लग जाता है।
इसके अतिरिक्त ठंडा-गरम खाने, अधिक मेहनत करने, चिन्ता, पानी में देर तक भीगते ठंडी हवा में सोने, अधिक मदिरापान करने, तम्बाकू का सेवन करने, प्यास, छींक, भूख, नींद आदि को रोकने के करण भी यह रोग हो जाता है। गरम स्थान से ठंडे स्थान पर जाने, दिन में सोने के बाद पानी पी लेने, ठंडा या बर्फ का पानी पीने, रात्रि में सिर धोने या स्नान करने आदि के कारण भी यह रोग हो जाता है।
उपचार
- दूध में हल्दी डालकर खूब गरम करके पीना चाहिए।
- तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी लौंग आदि का काढ़ा पीना चाहिए।
- कपूर की पोटली बनाकर सूंघने से नाक खुल जाती है।
- सर्दी से जुकाम हो तो आंवले का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटें। गर्मी का जुकाम हो तो आंवले का चूर्ण फांककर पानी के साथ निगल जाएं और जी भरकर पानी पिएं।