आज प्राय: सभी लोगो के भोजन का समय निश्चित होता है । समय होते ही लोग भोजन करने बैठ जाते है, चाहे भूख लगी हो या नहीं । अत: व्यक्ति भोजन भूख दूर करने के लिए नहीं, स्वाद लेने के लिए करता है । इससे रोगों की उत्पत्ति होती है ।
दुकानों और कार्यालयों में लोग काम करते हुए चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स आदि का इस्तेमाल करते रहते हैं । इसके बाद लंच टाइम में भोजन करने बैठ जाते हैं । इस तरह पेट और पाचन प्रणाली को जरा-सा भी आराम नहीं मिल पाता जो बाद में अनेक भयानक रोगों का कारण बनता है । अतः भोजन के संबंध से प्रथम सावधानी यह है कि मूख लगने पर ही खाएं । दो भोजनों के बीच में बार-बार कोई पेय पदार्थ अथवा बिस्कुट आदि नहीं लें ।
दूसरी सावधानी यह करें कि भोजन करते समय बातचीत बिल्कुल मत करें । टी.वी. आदि की छोर भी ध्यान न दें क्योंकि किसी भी कारणवश मन में क्रोध, भय, चिंता आदि उत्पन्न होने पर पाचन शक्ति पर बहुत खराब असर पड़ता है । अत: सही तरीका यह है कि भगवान का स्मरण कर भोजन करना शुरू करें । इस प्रकार आप अपने मन में शुभ विचारों का प्रवाह बनाए रखने से सफल हो जाते हैं जो भोजन को भली प्रकार पचाने में सहायक होता है ।
यदि आप क्रोध, भय, चिन्ता आदि से मग्न हैं तो बेहतर है कि भोजन न करें । कारण यह कि ऐसे हानिकारक मनोवेगों के समय आपका अामााशय तथा पाचन तंत्र भोजन को स्वीकार नहीं करता । वह उन्हें पचाने से इंकार कर देता है ।
भोजन करते समय उसकी गंध, स्वाद, रस आदि पर पूरा ध्यान दें । प्रत्येक कौर को खूब चबा-चबाकर खाएं ताकि उसमें मुंह की लार मिल जाए । दांतों से शुरु हुई भोजन की यात्रा का अंतिम पड़ाव आंतों का होता है । हमारी आंतें भोजन में बचे उपयोगी अंशों को चूस लेती हैं । आंतों के दांत नहीं होते । अत: हमें प्रत्येक भोज्य पदार्थ को दांतों से खूब चबा लेना चाहिए । इस बात को घर के बुजुर्ग इस प्रकार कहते हैँ-खाने वाली चीजों को पीना चाहिए और पीने वाली को खाना चाहिए। कहने का आशय यह है कि भोजन को इतना चबाइए कि उसमें भली प्रकार लार मिल जाए और यह पूरी तरह पतला हो जाए ताकि आमाशय में अच्छी तरह पच सके ।
पीने वाली चीजों को खाने का अर्थ है कि दूध, पानी, शरबत आदि को मुंह में चबाने से उनमें लार मिल जाए और वे अधिक पौष्टिक बन सकें ।
भोजन सदा भूख से कम खाएं ताकि वायु आदि का विकार पैदा न हो और पाचन प्रणाली पर आवश्यकता से अधिक जोर नहीं पड़े । इसकी कसौटी यह है कि भोजन के बाद आप में इतनी सामर्ध्य होनी चाहिए कि एक-दो फर्लांग बिना किसी परेशानी के घूम-फिर सकें। मध्यान्ह का भोजन करने के बाद पंद्रह मिनट से लेकर एक घंटे तक का विश्राम लाभदायक होता है । रात्रि में भोजन के बाद एक-दो किलोमीटर खुली शुद्ध वायु से घूमने से वह भली प्रकार पच जाता है । रात्रि का भोजन सूर्यास्त के तत्काल बाद कर लेना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा रहता है ।