यह बङी खतरनाक बीमारी है। जब कभी किसी स्त्री या पुरुष को गठिया हो जाता है तो उसे असहनीय कष्ट उठाना पड़ता है । साधारण रूप से यह रोग युवावस्था से वृद्धावस्था तक ही होता है । परन्तु कभी-कभी यह कम आयु के बालकों को भी होते देखा गया है।
लक्षण एवं कारण – यह वायु को बढ़ाने वाले पदार्थों को खाने से हो जाता है । कभी-कभी विरोधी पदार्थ जैसे दूध और मछली, मीठा और खट्टा, गरम और सुखा ठंडा आदि खाने के कारण भी गठिया का रोग को जाता है । कुछ स्त्री-पुरुष आलसी होते हैं या पानी में अधिक समय तक रहते हैं उनको भी यह रोग हो जाता है।
इस रोग में वायु बढ़ जाती है और कफ के साथ मिलकर शरीर के जोडों में इकट्ठी हो जाती है।
शरीर में जब वायु भर जाती है तो हाथ-पैर, सिर, जांघों, एङी तथा कमर के जोङो में बुरी तरह पीङा होने लगती है । कभी-कभी सूजन से बेचैनी अधिक बढ़ जाती है, ऐसा लगता है जैसे कोई सुई चुभा रहा हो। मुंह सूख-सा जाता है। कभी-कभी लार अधिक बहने लगती है। बार-बार पेशाब आता है और लगता है जैसे किसी ने हृदय को जकङ लिया हो।
उपचार
- सोंठ, पिपलामूल, भुनी हुई हींग, काला और सफेद जीरा, बायबिडंग, कुटकी, अतीस भारंगी, बच ये सब दो-दो तोला लें और हरङ-बहेङा-आंवला पाव-पाव भर लेकर कूट-पीस के छान लें। इस मिश्रण के बराबर शुध्द किया हुआ गुग्गल मिलाकर कूटें और थोङी – थोङी मात्रा में देशी घी रचाएं। एकजान हो जाने पर इनकी चबे बराबर गोलियां बना लें। इन्हें कवोष्ण (हल्के गर्म) दूध के साथ तीन या चार गोलियां
प्रात: – सायं लें। - वायु का ही गठिया प्राय: अधिक सताता है । आप ताजा-ताजा आंबलों का रस पुराने घी में पकाकर पी जाइए। मुंह के स्वाद को बदलने के लिए बाद में शहद चाट लीजिए । आप स्वयं अनुभव करेंगे कि आपके हाड़-गोड़ में उठकर चलने, थोङा तेज चलने, फिर दौड़ने- भागने की फुर्ती आने लगी है । यह काढ़ा आपको दो हफ्ते जारी रखना चहिए।
पध्यापथ्य
गेहूं तथा बाजरे के आटे की रोटी खानी चाहिए । शाक – सब्जियां, तोरई, मेथी, चौलाई, टिण्डे, बैंगन, करेला आदि का प्रयोग करना चाहिए।
फलों में सेब, पपीता, अंगूर, खजूर आदि विशेष लाभकारी हैं ।
इसी प्रकार चना, उड़द की दाल, चावल, जौ की रोटी, आलू, अरवी, गोभी, फली, मूली, केला, संतरा, नीबू, टमाटर, इमली, दही, बर्फ आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।