प्राकृतिक चिकित्सकों का यह मत अब धीरे-धीरे मान्यता प्राप्त करता जा रहा है कि गलत प्रकार के आहार-विहार से ही रोग उत्पन्न होते हैं । गलत और गरिष्ठ चीजों के खाने से शरीर के विकार बढ़ते हैं । शरीर के अंदर जो विजातीय तत्व एकत्रित हो जाते हैं, उन्हें बाहर निकालने के लिए आंतरिक अंगों को बहुत परिश्रम करना पड़ता है । इस कारण शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग या दर्द पैदा होते हैं । रोग या पीङा हमारे आंतरिक अंगों द्वारा मस्तिष्क को भेजे जाने वाले संदेश या खतरे की घंटियां हैं जो हमें सावधान करना चाहती हैं । वे हमें बताती हैं कि हम गलत आहार-विहार द्वारा अपनी शरीर रूपी मशीन पर जरूरत से ज्यादा बोझ डाल रहे हैं । अतः ऐसे समय हमें अपने शरीर को आवश्यकतानुतार उपवास या विश्राम आदि देकर स्वस्थ करने का प्रयत्न करना चाहिए । दर्द दूर करने वाली दवाइयां लेकर अपने शरीर से कष्ट में भी कार्य करवाते रहना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध होता है।
भोजन के संबंध में उपर्युक्त सावधानी का पालन करके मेरे एक परिचित 70 वर्ष की आयु में भी पूर्णत: स्वस्थ हैं । दरियागंज, दिल्ली में निवास करने वाले मेरे यह परिचित श्री ज्योति प्रसाद जैन शरीर में किसी भी प्रकार की पीङा या बुखार होने पर भोजन करना त्याग देते हैं । उपवास के दौरान वह शहद मिला नीबू पानी लेते हैं । जब तक भूल अच्छी तरह नहीं लगती, कुछ नहीं खाते । अच्छी तरह भूख लगने पर वह पहले दिन सेब, अंगूर, टमाटर आदि फल या उनका रस लेते हैं । इसके बाद दलिया-खिचङी आदि, फिर तीसरे दिन से सामान्य भोजन लेना शुरू करते हैं।