भोजन करते समय निम्नवत सावधानियों क्री आवश्यकता होती है क्योंकि इनके अभाव में अनाजों द्वारा प्राप्त पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
- भोजन सदैव पेट भरके नहीं रवाना चाहिए । पेट में कुछ खाली भाग अवश्य छोड़ देना चाहिए ताकि पाचन क्रिया प्रभावित न हो ।
- दिन का भोजन 12 से 1 बजे के बीच तथा रात्रि का भोजन 7 से 9 बजे के बीच अवश्य कर लेना चाहिए । यदि भूख न लगे तो थोड़ा-सा समय घटाया-बढाया जा सकता है । शास्त्रों में लिखा है कि प्रातःकाल का भोजन मैं 11 बजे और सायंकाल का भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए ।
- दिन में भारी भोजन भी पच जाता है लेकिन रात में गरिष्ठ भोजन नहीं पचता, अतएव हल्का भोजन ही खाना चाहिए ।
- नाश्ते में हलवा, रबडी, मिठाई और खट्टी चीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए । अंत में खट्टे, कड़वे तथा कसैले पदार्थों का सेवन भी न करें ।
- भोजन अच्छी तरह चबाकर निश्चित्त होकर खाएं । सोचते-विचारते समय भोजन नहीं करना चाहिए । इससे गले में फंदा लगने का भय रहता हैं ।
- भोजन के बाद थोडा गुड़, इलायची, मिश्री या सौंफ मुंह में रखकर चबाएं । इससे खाना शीघ्र मचता है तथा मुंह की दुर्गंध भी दूर हो जाती है ।
- भोजन के पश्चात 10 मिनट तक घुटने मोड़कर वज्रासन में बैठें ।
- भोजन के पश्चात बीङी, सिगरेट या हुक्का आदि न पिएं ।
- भोजन का चुनाव सदैव अपनी प्रकृति, दिनचर्या, मौसम, जलवायु, रुचि, परिस्थिति तथा स्वाद के अनुसार करना चाहिए ।
- परिवार के लोग एक साथ बैठकर भोजन करें । इससे प्रेम बढता है ।
- भोजन भूमि पर आसन बिछाकर पालथी के रूप में बैठकर खाएं ।
- भोजन सदैव ताजा, गरम तथा शुद्ध ही खाएं ।
- यदि पेट भरा हो, खट्टी डक्रारें आती हों, पेट में वायु हो, गुड़गुड़ की आवाज आती हो, चिन्ता या भय हो अथवा चित्त उदास को तो भोजन न करें।
- जिन लोगों को कब्ज तथा वायु विकार की शिकायत हो, उन्हें अरहर तथा उड़द की दाल नहीं खानी चाहिए ।
- जाडों में ठंडी चीजें खाने से सदैव बचना चाहिए ।
- अपने स्वभाव एवं आयु के अनुसार उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए । इसरो शरीर का बल बढ़ता है और चेहरे पर कांति आती है ।