कितने ही व्यक्ति सदैव ही यह शिकायत करते दिखाई देते है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है-अर्थात् ऐसे व्यक्ति हमेशा – ही – किसी न किसी रोग से पीङित रहते है । कभी सिर-दर्द, कभी मेदे की खराबी, बेचैनी, भूख की कमी, कमजोरी, रात को नींद न आना-और ऐसे दूसरे कितने ही साधारण विकार धीरे-धीरे विकसित होकर भयंकर रोगों का रूप धारण कर लेते है।
किन्तु क्यों ऐसा होता है – अस्वस्थता के क्या कारण हैं ? आइये । तनिक विचार करें, इन बातों पर ।
प्रात: के समय
प्रात: के समय नींद से बेदार होते ही हम जब पहली अंगङाई भरते हैं, तभी से स्वास्थ्य के नियमों का उल्लंघन आरम्भ कर देते हैँ और जब तक पुनः रात्रि के समय अपने बिस्तर में आ नहीं जाते, तब तक यही सिलसिला जारी रखते है, बल्कि रात्रि को सोते समय भी नींद की हालत में नियमों के उल्लंघन का यह क्रम जारी ही रहता है ।
नींद खुलते ही पहली मांग होती है ‘बैड-टी’ की – अर्थात् बिस्तर पर चायपान की जाती है । कई व्यक्ति कोई अन्य पेय लेते है और कई एक तो चाय आदि के साथ-साथ कूछ-न-कूछ सेवन भी करते हैं । आजकल ऐसे व्यक्तियों की सख्या भी कम नहीं है, जो प्राथमिकता सिगरेट को देते है और दूसरा नम्बर होता है चाय का । तब तो उल्लंघन-क्रम आरम्भ ही हो जाता है और यह सिलसिला क्रमश: चलता ही रहता है दिन-भर-दिन-रात ।
नियम तो यह होना चाहिए कि सर्वप्रथम शारीरिक सफाई की ओर ध्यान दिया जाये और बाद से कुछ भी सेवन किया जाये । विश्राम के क्षणों में भी शरीर के भीतरी अंग अपना काम करते रहते है । मेदे में जो कुछ भी सोने से पूर्व तक हम डाल चुके होते हैं, पाचन-क्रिया इसे पचाती है तया शेष रह गये पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देने के लिये छोड़ देती है । इसी प्रकार मुंह से भी शरीर की गंदगी किसी-न-किसी रूप में आकर जमा होती रहती है । जिसकी सफाई करना आवश्यक होता है । किन्तु ऐसा करने के स्थान पर जब हम चाय आदि किसी भी पदार्थ का सेवन करते हैँ, तो न केवल मुंह की सारी गंदगी शरीर के भीतर ले जाते है, बल्कि मेदे पर बोझ डालकर उसे भी परेशान कर देते हैं । मेदा जिन स्वाभाविक क्रियाओं के सम्पादन के लिए तत्पर होता है, वे सभी अस्त-व्यस्त हो जाती है तथा इसका कुप्रभाव अन्य सम्बन्धित अंगों तथा उनकी क्रियाओं पर भी पङता है । परिणाम यह होता है कि पाचन-क्रिया में गड़बड़ उत्पन्न हो जाती है ।
इसके बाद दिन-भर हम खाने-पीने, उठने-बैठने, पहनने और चलने-फिरने में बदपरहेजियां करते ही चले जाते है । प्रात: उठते ही सैर के लिए जाना तो दूर की बात, सायं की सैर करना भी हम आवश्यक नहीं समझते । न ही कभी यह सोचते हैं कि जिस वातावरण में हम रहते है, क्या यह स्वच्छ है ? और अगले दिन फिर से यही सिलसिला आरम्भ हो जाता है ।
अस्वस्थता का उत्तरदायित्व किस पर?
नतीजा यह निकलता है कि हम बीमार पङ जाते हैं, कई तरह के विकार उत्पन्न होने लगते है, कब्जा तथा अपच की शिकायत तो आमतौर पर रहने ही लगती है, दांत, मसूढ़े खराब हो जाते है और शरीर भीतर-ही-भीतर खोखला होने लगता है ।
किन्तु इस सबके लिए उत्तरदायी कौन हैं ? -इसका उत्तर हम स्वयं ही हैं जो अस्वस्थता के कारणों को ज़न्म देते हैं और भिन्न रोगों को आमन्त्रित करते हैं । हम में से शायद कुछ एक व्यक्ति ऐसे हों जो उचित रूप से स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करते हो । अधिकतर लोग तो ऐसी जानकारी ही नहीं रखते और प्रत्येक क्षण कोई-न-कोई बदपरहेजी करते रहतें है । दरअसल हम आज इतने आरामपसन्द हो गये है, कि स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण की विषय की अवहेलना एक आम-सी बात बन गई है ।